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सफर - मौत से मौत तक….(ep-33)

अगली सुबह

"मैंने कभी सोचा भी नही था कि आप ऐसी हरकत करोगे….क्या मुंह दिखाऊँगा में अपने आफिस में, सारा स्टाफ हँस रहा होगा मुझपर" समीर में डांटते हुए अपने पापा से कहा।

"लेकिन मैंने ऐसा भी क्या किया" नंदू अपने किये से अनजान था,एक पेग लगाने के बाद का उसे कुछ भी याद नही था।

"क्या किया?? भोले तो ऐसे बन रहे जैसे कुछ किया ही नही, आने दो रिसेप्शन की सीडी….पहली डीवीडी इधर हि मँगा लेंगे" इशानी ने तंज कसते हुए कहा।

"पापा, जब आपको पता था कि आपको नही पचेगी, आपको ज्यादा चढ़ जाएगी तो क्या जरूरत थी इतना पीने की" समीर बोला।

"लेकिन सिर्फ एक पेग ही तो…." नंदू बोलते बोलते अटक से गया और दिमाग मे जोर डालने की कोशिश करने लगा, दो तीन पेग और लगा लिए थे ऐसा कुछ उसे याद आया उससे ज्यादा कुछ याद नही आया।

"एक ही पेग….पूरी बोतल मुंह पर लगाकर जो डांस आपने किया था, और वो गोविंदा की तरह कमर हिलाने की क्या जरूरत थी"  समीर बोला।

"वो सब तो ठीक है लेकिन वो गाना……मतलब हद होती है किसी चीज की" इशानी ने कहा।

इशानी की बात सुनकर थोड़ा थोड़ा फिर याद आया और नंदू थोड़ी देर के लिए फ्लैशबैक में चले गया।

नंदू ने एक पेग लगाया और उसके बाद ना जाने क्या हुआ एक के बाद एक पेग लगाने लगा। अब तो शर्मा जी जैसा उनका दोस्त कोई था ही नही, उधर इशानी और समीर कपल डांस कर रहे थे।

तभी आवाज आई " आये हुए सभी मेहमानों से गुजारिश है, खाना आपका इंतजार कर रहा है, जो खाना खाना चाहते है  खा सकते है थैक्यू…."
नंदू इधर उधर देखने लगा "ये गाने के बीच मे आवाज कहाँ से आई" नंदू ने पूछा।

शर्मा जी ने डीजे वाले कि तरफ इशारा किया तो डीजे वालें के हाथ मे माइक था,  तभी एक वेटर एक ट्रे में एक ओल्ड मोंक की बोतल ले आया। नंदू को ना ब्रांड पता थे ना उनका स्वाद बस जो हाथ लगा वो पी लेता….फ्री की जो थी।
इस बार उन्होंने पैक नही बनवाया बोतल ही उठा ली और एक हाथ से बोतल को सिर पर रखते हुए नाचने लगे, धीरे धीरे कुछ लोग ताली बजाकर उनका उत्साहवर्धन करते पाए गए….अभी समीर और इशानी की नजर नही पड़ी थी नंदू पर इसलिये वो बेफिक्री से नाच रहे थे।
तभी गाना बन्द हो गया
और एक बिना संगीत बिना ढोल तबले की गाने की आवाज सुनाई दी, जो लड़खड़ाती जुबान से बहुत सुंदर लय में प्रस्तुत हो रही थी।

अपने ही गिराते हैं नशेमन पे बिजलियाँ
आऽ…….

सबने डीजे वालें की तरफ देखा तो एक उम्रदराज व्यक्ति ने एक हाथ मे ओल्डमोंक की बोतल तो एक हाथ मे माइक थामा था, और डीजे वाला परेशान अपना सिर पकड़कर बैठा था।

अपने ही गिराते हैं नशेमन पे बिजलियाँ
नशेमन पे बिजलियाँ

इशानी अपने आंखों को मलते हुए देखने लगी, उसे अभी तक यकीन नही हुआ कि उसका संस्कारी और सज्जन पुरूष ससुर ऐसी बेवड़ो वाली हरकत कर रहा है।
समीर का चेहरा गुस्से से लालहो चुका था, उसे उसके आफिस के पार्टी में पापा की ये हरकत देखते ही गुस्सा आने लगा, शायद उसका ब्लड प्रेशर ही बढ़ गया था,  वो गहरी गहरी सांस लेने लगा, इशानी ने उसे कुर्सी में बिठाते हुए कहा- "आप शांत हो जाईये….करने दीजिए मस्ती….करवा लेने दीजिए अपनी बेइज्जती…."

"बेइज्जती उनकी नही मेरी हो रही है इशानी, उनको कोई नही जानता यहां, जो भी जानता है मेरे नाम से जानता है, और बदनाम वो होता है जिसका नाम होता है, उनका कोई नाम नही है, वो मुझे बदनाम कर रहे है" समीर बोला।

"लेकिन अगर आप उनके पास गए तो जिसे नही पता वो भी जान जाएंगे कि वो पियक्कड़ तुम्हारा बाप है….इसलिये शांत रहिये और मामला शांत होने दीजिए" इशानी बोली।

अपने ही गिराते हैं नशेमन पे बिजलियाँ
नशेमन पे बिजलियाँ
ग़ैरों ने आ के
ग़ैरों ने आ के फिर भी उसे थाम लिया है
उम्र भर का ग़म हमें ईनाम दिया है
दुश्मन न करे ओऽ

नंदू चारो तरफ लोगो की एकजुट हो रही भीड़ को देखकर  और भी जोश में आ गया। खुली हुई छलकती बोतल पर मुंह लगाकर आसमान कि तरफ उचकते हुए बिना पानी मिलाये आधी बोतल गटक ली और आगे गाना शुरू किया।

दुश्मन न करे दोस्त ने वो काम किया है
उम्र भर का ग़म हमें ईनाम दिया है
दुश्मन न करे दोस्त ने वो काम किया है
उम्र भर का ग़म हमें ईनाम दिया है

इतना गाने के बाद भीड़ कि तरफ दोनो हाथ उठाकर किसी सुपरस्टार की तरह हाई करते हुए नंदू ने हाथ हिलाया और कहा- "मैं….नंदू….नाम तो सुना ही होगा…….ओऽप (नंदू डकार लेते हुए बोला….
नंदू ने अलग अलग वेरियंट पी हुई थी तो शायद इसलिये उसे उबकाईयाँ आने लगी थी….उबकाई करते हुए नंदू लड़खड़ाते हुए स्टेज से बाहर जाने लगा तो अचानक ही एक  कुर्सी से टकराते हुए गिर पड़ा।

उसके गिरते ही समीर भागता हुआ आया और पापा को उठाया, और धीरे से कन्धे का सहारा देकर एक किनारे ले गया। जहां नंदू उल्टियां  करने लगा।

"नंदू फ्लैशबैक से वापस आया और बोला- "दस बज गए, आफिस की छुट्टी है क्या"

"गाड़ी धुलवाने बुलाया है कोई….पीछे की शीट उल्टी से भर रखी है, और वैसे भी क्या मुँह लेकर जाउँ……पीने को हर कोई पीता है आजकल, लेकिन लिमिट होती है"  समीर बोला।

नंदू की नजर उठ नही रही थी आज, नंदू बहुत शर्मिंदा था। उसे उन दोनों की एक एक बात चुभ रही थी,  लेकिन आज उनकी बातों में सच्चाई थी और नंदू गलत। इसलिये नंदू थोड़ा झुक रखा था।

इस दिन के बाद नंदू को पार्टी वगेरा में ले जाना छोड़ दिया, सिर्फ नंदू की एक गलती की वजह से समीर और इशानी और भी दूर हो गए थे। लेकिन इस एक ही गलती ने नंदू की लाइफ की एक आदत तो बिगाड़ ही दी….नंदू ने एक बात ध्यान दी कि उस दिन एक पेग लगाने के बाद वो सारी तकलीफें भूल चुका था।

***कुछ दिन बाद***

उसे रोज दिन भर अकेले रहना और शाम को भी अकेले ही रहना बहुत ही तन्हा कर देता था, इसलिये एक दिन नंदू घर से थोड़ा दूर बाजार की तरफ घूमने चल पड़ा। अचानक उसकी एक स्पेशल रेस्टो-बार पर पढ़ी। नंदू के मन की सुइयां एक बाडफिर घूम गयी और इस बार उसने पैसो एक बोतल खरीदी और वही बैठकर दो पैग लगाई और बाकी बचा हुआ बोतल बैग में रखकर घर की तरफ आ गया।
  घर पर समीर नही था, इशानी थी भी तो वो कोई मतलब रखती नही थी नंदू से। नंदू चुपचाप कमरे में गया और लेट गया। उस दिन सिर्फ एक वेराइटी और सिर्फ दो पेग थे तो उसे परम आनंद प्राप्त हुआ, बोतल का बचा हुआ अगली शाम को लगाया और उस दिन मार्किट भी नही जाना पड़ा और घर बैठकर ही पी गया। थोड़ा बोतल में और बचा था उसे अगले दिन के लिए रखते हुए बोला- "बस कल इसे खत्म करके फिर कभी नही पियूँगा"

फिर अचानक ख्याल आया कल करे सो आज कर आज करे सो अभी- "कल क्यो….आज से ही छोड़ देता हूँ इस दारू को,इसे आज ही खत्म कर लेता हूँ" कहते हुए नंदू ने  वो भी खत्म कर दिया।

अगले दिन शाम को घर मे नही थी तो बैचेनी एक बार फिर मार्किट की सैर पर नंदू को खींच ले गयी। नंदू रोज पीने लगा और समीर इशानी को खबर भी नही । इसलिये खबर नही हो पाई क्योकि नंदू अपने कमरे में पढ़ा रहता था। और खाना तो वैसे भी वो उन लोगो से पहले खा लेता था। समीर आता और चेंज करके इशानी के साथ सैर पर निकल जाता था। पुष्पा को पता था लेकिन नंदू ने बताने को मना किया था। और वैसे भी जिस दिन ज्यादा चढ़ जाती तो स्वादिष्ट खाने के बदले उसे सौ पचास रुपए टिप भी मिल जाते थे।
 

एक दिन नंदू ने ज्यादा पी लिया था और समीर के आने से पहले घर नही पहुंच पाया इसलिये रास्ते मे समीर को मिल गया।
नंदू  सड़क  पर इस तरह चल रहा था जैसे बहुत सारा कीचड़ हो सड़क पर और वो खुद को कीचड़ में चलने से बचा रहा हो, एक कदम छोटा एक कदम लंबा और कभी दाएं तो कभी बाएं, हाथ मे एक बोतल थी, जिसके मुंह से मुंह मिलाते हुए नंदू चला ही जा रहा था। लड़खड़ाते हुए चलते हुए नंदू को देखकर समीर ने गाड़ी रोकी और उन्हें किटनेप करके घर ले गया। किटनेप का मतलब सड़क पर एक लफ्ज़ बात भी नही की हाथ पकड़ा जबरदस्ती गाड़ी में बिठाया और गाड़ी घर ले आया।

घर मे आते ही इशानी को आवाज देते हुए बुलाया और मदहोश पापा का गुस्सा उसपर निकालने लगा।

"इशानी……इधर आओ" समीर चिल्लाया।

ईशान बाहर आते हुए बोली- "ओहहो……क्या हो गया आपको,चिल्ला क्यो रहे हो"

इशानी ने देखा नंदू के साथ खड़े उसके ससुरजी जिनकी आंखे अधखुली थी गर्दन थोड़ी लटकी हुई सी टेडी थी और दोनो पैर फैलाकर मुश्किल से खड़े थे।

"ये इन्हें क्या हुआ….सुबह तक तो ठीक ठाक थे" इशानी ने कहा।

"तुम करती क्या हो घर पर….कम से कम इतना तो ध्यान रखो कौन घर पर है कौन नही" नंदू चिल्लाते हुए बोला।

"अब इसमें मेरी क्या गलती, बताकर थोड़ी जाते है, अब मैं गेट पर तो खड़ी होऊंगी  नही" इशानी ने भी ईंट का जवाब पत्थर से दिया।

"अभी सड़क से उठाकर ला रहा हूँ, मेरी जगह कोई और गाड़ी वाला होता तो उठाकर लाने नही पड़ते, खुद ही उठ जाते" समीर बोला।

"अब पकड़कर खड़े रहोगे क्या, बिठा दो उधर, हमने किटी पार्टी में भी जाना है" इशानी बोली।

"कही नही जाना है….बैठी रहो घर पर….किटी पार्टी किटी पार्टी….हर तीसरे दिन पार्टी हो जाती है….पहले इनका सोचो मुझे शक तो था कि आजकल ये कुछ गड़बड़ कर रहे लेकिन समझ नही आ रहा था कि क्या और कैसे….तुम घर मे रहती हो पता होना चाहिए था तुम्हे" समीर ने फिर डाँट दिया इशानी को।

अगली सुबह फिर दोनो ने मिलकर नंदू की क्लास लगाई, लेकिन इसबार नंदू को उतनी ज्यादा शर्म महसूस नही हो पाई थी जितनी उस दिन। लेकिन सिर झुकाकर बैठा था, क्योकि गलती उसकी थी। और इस बार उसे पेग लगाना गलती नही लगी। वो समीर के आने से पहले घर नही पहुंच पाया ये गलत लगा। उसने ये सोच लिया था कि आज वो समीर के आने से पहले आ जायेगा। लेकिन जाएगा जरूर और एक दो घूंट लगाएगा जरूर….क्योकि उसकी जिंदगी जन्नत होती जा रही थी, शाम को हँसी बनाने और अकेलापन दूर करने के लिए दो बूंद तो जरूरी ही हो गया था उसके लिए। शराब पीना उसने जरूर सीखा लेकिन सही तरीक़े से नही, जमाने मे हर कोई पीता है लेकिन शायद वो किसी को खबर नही होने देते। और वो लोग शराब पीकर भी शराबी नही कहलाते , शराबी तो वो है जो मयखाने से ही झूमते हुए घर की तरफ आता है।

नंदू ने मयखाना यानि रेस्टो-बार जाना नही छोड़ा, गम याद रहते थे पीकर भी, पीकर सड़क किनारे बैठकर पागलो की तरह रोता था नंदू, लेकिन पेग लगाने के बाद से नशा उतरने  तक के बीच की एक अलग दुनिया थी, ऐसी दुनिया जहॉं जाने के बाद उसे बिना नशा वाली अपनी जिंदगी का हर पहलू याद आता था, लेकिन जब उस नशे दुनिया से बाहर आता तो उस दुनिया मे हुई घटनाओं को वो भूल जाता था। याद रहता तो वो आखिरी पेग और कुर्सी को पीछे को धकेलकर रेस्टोरेंट से बाहर की तरफ का दरवाजा……
ये भरोसा नही रहता था कि वो घर पहुंच पायेगा या नही, लेकिन एक उम्मीद थी जिज़ दिन ना जा पाए उसका बेटा उसे लेने आयेगा, और इसी उम्मीद में वो सड़क सड़क चलकर घर की तरफ जाता था।


मेरी  उम्मीदें आज भी टिकी है जिसपर
वो एक कच्चा सा नाजुक सा धागा था।
भरोसा आज भी है सपनो में अपने फिर भी
हकीकत के करीब ख्वाबो से मैं दूर  भागा था।
हादसों से सीखा जख्म सहना
और झख़्म हादसों पर इल्जाम लगाते है
लोग गलतियां खुद करते है और
जानते हुए भी दूसरों का नाम लगाते है।
मैं आज फिर से मुस्कराया एक बार
फिर हंसा और खिलखिलाया भी
रोते रोते थक गई थी ये आंखे मेरी
इनको एक खुशी से मिलाया भी।
एक मस्ती थी खून में, एक जोश सा था रगो में
कभी नही पीता था जाम,
आज एक घूंट वो जहर पिलाया भी।
और अब जादू देखो….
मुझे सारी दुनिया हसीन लगती है।
आह….चारो तरफ का नजारा
दिख रहे एक के चार, और तीन के बारा
पैर हवा में हो जैसे, ऐसा हल्कापन था।
अपनी आवाज जैसे मधुर हो सुरीली सरगम सी,
गाता रहा जोर से, कुछ ऐसा पागलपन था।
ना अपनी सुध
ना होश घर जाने का,
ना जीने की तमन्ना
ना डर था मर जाने का
बीच सड़क….और आते जाते लोग
गोल थाल सी चांद और बिखरे तारे।
मुझे ही देख रहे थे सारे के सारे।
मैं भी धुंधली अधखुली आंखों से उन्हें देखता रहा
देखते रहा, और धीरे से आंखे बंद करने लगा।
इतना पीने के बाद फिर से अपने पनाहो मे
यादों को तेरी भरने लगा।
जिक्र नही किया था अब तक
मगर खुद से भी छिपाऊ कब तक
तुझे भूलने की दवा का असर
रात की ये ठिठुरती सर्दी  कम कर देती है।
ना जाने क्यो तेरी याद जब भी आये
मेरी मुस्कराती आंखों को भी नम कर देती है।
अब उठकर दोबारा मयखाने की तरफ
कदम बढ़ाते हुए लड़खड़ाने लगा
बस आज आखिरी बार पियूँगा
फिर कभी नही पियूँगा।
कुछ इस तरह बेमतलब बड़बड़ाने लगा


एक तरफ नंदू घर नही पहुंचा था और दोबारा रास्ते से रेस्टो-बार की तरफ जाने लगा था। तो दूसरी तरफ रात को इशानी और समीर झगड़ रहे थे।

"तुमने देखा नही था क्या वो कब गए,रात के नौ बज गए, कब तक घर पर बैठकर इंतजार करें उनका" समीर ने इशानी से कहा।

"फोन भी घर छोड़ गए है, और मुझे क्या पता कमरे से कब खिसक जाते है, कल मैंने खिसकते हुए देखे थे तो कल आपके आने से पहले आए गए थे, शायद कल भी पी थी थोड़ी। आज मैंने नही देखे जाते हुए तो मुझे लगा कमरे में ही होंगे" इशानी बोली।

"मेरी गलती है, आफिस से आकर एक बार मिलना चाहिए था उनसे, सीधे तुम्हारे साथ सैर पर आकर गलती कर दी।  वो तो पुष्पाकली ने बता दिया नही तो हम सोचते वो खा पीकर सो गए होंगे" समीर बोला।

"अब इसमें भी मेरी गलती है, खा पीकर नही सिर्फ पीकर सो गए होंगे सड़को में, जाओ ढूंढो अपने बाप को किसी नाली में…." इशानी ने कहा।

"ज्यादा मुझपर चढ़ने की जरूरत नही है, तुम्हारा बाप तो क्या तुम्हारी माँ भी पीती है….ये धौंस मत जमाया करो, हर वक्त चिल्लाना छोड़ दो और थोड़ा ध्यान दो पापा पर भी…." समीर ने इशानी को डांटते हुए कहा।

"हां पीते है मेरे मम्मी पापा दोनो पीते है, चियर्स करके पीते है, मैं भी पीती हूँ, क्या कर लोगे, लेकिन सस्ती दारू पीकर नाली में नही गिरते हम….इज्जत से पीते है, सड़को पर तमाशा नही बनाते….तुम्हे क्या लगता है कुछ पता नही चलता, मुझे मेरी कितनी सहेलियों ने कह दिया कि तुम्हारा ससुर सड़को पर मोहहमद रफी बने फिरता है आजकल….क्या करूँ बांध के तो नही रख सकती उनको" इशानी और जोर से चिल्लायी और कदम पटकते हुए अंदर को चली गयी।

समीर भी गाड़ी लेकर मार्केट की तरफ निकल पड़ा।

कहानी जारी है


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4 Comments

Fiza Tanvi

08-Oct-2021 05:14 PM

Good

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Niraj Pandey

07-Oct-2021 02:00 PM

बहुत ही शानदार

Reply

Seema Priyadarshini sahay

02-Oct-2021 11:06 PM

बहुत सुंदर भाग

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